कामकाजी घंटों पर फिर छिड़ी बहस: Harsh Goenka का सवाल, क्यों न संडे का नाम बदलकर सन-ड्यूटी कर दें?
नई दिल्ली: संडे और हफ्ते में 90 घंटे काम करने के सुझाव को लेकर चर्चा में आए एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। अब आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने उनके इस सुझाव की आलोचना की है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर हर्ष गोयनका ने एसएन सुब्रह्मण्यन की एक तरह से क्लास लगा दी है।
सुब्रह्मण्यन के बयान से हर्ष गोयनका असहमत हैं। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है कि संडे का नाम बदलकर ‘सन-ड्यूटी’ क्यों न कर दिया जाए। साथ ही उन्होंने स्मार्ट वर्क की वकालत ली है। इसके अलावा उन्होंने काम और जीवन के बीच में बैलेंस की भी बात कही है। हर्ष गोयनका ने अपनी पोस्ट के लास्ट में हैशटैग के साथ वर्क स्मार्ट नॉट स्लेव भी लिखा है, जिसका अर्थ है- समझदारी से काम करो, गुलाम न बनो।
क्या लिखा है पोस्ट में?
हर्ष गोयनका ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘हफ्ते में 90 घंटे? संडे का नाम बदलकर ‘सन-ड्यूटी’ क्यों न कर दिया जाए और ‘छुट्टी का दिन’ एक काल्पनिक अवधारणा क्यों न बना दिया जाए! मैं कड़ी मेहनत और समझदारी से काम करने में विश्वास करता हूं, लेकिन जीवन को एक सतत कार्यालय शिफ्ट में बदल देना? यह बर्नआउट का नुस्खा है, सफलता का नहीं। वर्क-लाइफ बैलेंस वैकल्पिक नहीं है, यह आवश्यक है। खैर, यह मेरा विचार है! #वर्कस्मार्टनॉटस्लेव।’
क्या कहा था सुब्रह्मण्यन ने?
सुब्रह्मण्यन एक वीडियो में कहते नजर आ रहे हैं कि अगर उनका बस चले तो वह कर्मचारियों को संडे को भी ऑफिस काम पर बुला लें। साथ ही वीडियो में वह हफ्ते में 90 घंटे काम करने की वकालत करते नजर आ रहे हैं।
वह वीडियो में कह रहे हैं, ‘मुझे खेद है कि मैं आपको रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूँ। अगर मैं आपको रविवार को काम करवा पाऊं तो मैं ज्यादा खुश रहूंगा क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं।’
कंपनी ने किया बचाव
अपने बयान को लेकर चारों ओर से घिरे सुब्रह्मण्यन का एलएंडटी कंपनी ने बचाव किया है। एलएंडटी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारा मानना है कि यह भारत का दशक है, एक ऐसा समय जिसमें प्रगति को आगे बढ़ाने और एक विकसित राष्ट्र बनने के हमारे साझा दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सामूहिक समर्पण और प्रयास की आवश्यकता है। अध्यक्ष की टिप्पणी इस बड़ी महत्वाकांक्षा को दर्शाती है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि असाधारण परिणामों के लिए असाधारण प्रयास की आवश्यकता होती है।’