उत्तर प्रदेश
सजा विचारों का मेला, अभिव्यक्ति के उत्सव का हर रंग अलबेला
गोरखपुर। उत्सव अभिव्यक्ति का, जहां मंच और वक्ता संग हर श्रोता संवादी है। सतत संवाद से समृद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा जिसकी आत्मा हो उस आयोजन का इस तरह जीवंत होना सहज स्वाभाविक है। शुक्रवार को साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ तिवारी ज्ञान की अधिष्ठात्री मां सरस्वती के सम्मुख आस्था के दीप जलाते हैं और योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह दो दिवसीय ”संवादी” के उत्सवी आलोक से नहा जाता है।
उद्घाटन सत्र अपनी भाषा हिंदी की समृद्धि के अभियान ”हिंदी हैं हम” के नाम होता है, जिसमें प्रो. विश्वनाथ तिवारी हिंदी माने भारतवासी और भारत का अर्थ हिंदी बताते हैं। इसके बाद सत्र-दर-सत्र कार्यक्रम विस्तार लेता जाता है। साहित्य, समाज और संस्कृति पर मंथन के बाद शाम होती है, तो सभागार गीत-संगीत के रस से सराबोर हो जाता है।
गुरु गोरक्षनाथ की नगरी में ”संवादी” के दूसरे संस्करण ने कैसे ऐसा व्यापक आकार पाया, उद्घाटन सत्र में दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल पिछले वर्ष मिले अनुभव को इसका कारण बताते हैं। कहते हैं कि तब यह प्रतीत हुआ कि यहां ऐसे आयोजन को देखने और सुनने वाले बहुत लोग हैं।
इस वर्ष का दो दिवसीय आयोजन इसी का परिणाम है। साहित्य और संस्कृति की हर विधा में अभिव्यक्ति को मंच देने का उद्देश्य साझा करते हुए वह कहते हैं जैसा जीवन वैसा ही ”संवादी” है। उनके बाद डायस पर इतिहासविद् प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी आते हैं, जो हिंदी के ऐतिहासिक विरुद्ध और संघर्ष से सभागार को परिचित कराते हैं।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में ऐसे हर कुचक्र की चिंता को निर्मूल सिद्ध करते हुए प्रो. विश्वनाथ तिवारी कहते हैं, हिंदी की अविरल धारा के आगे अवरोध टिक नहीं सकते हैं।
दूसरे सत्र में साहित्यकार डा. अभिषेक शुक्ल, नवीन चौधरी और सहायक आचार्य डा. अपर्णा पांडेय के साथ भारतेंदु नाट्य अकादमी के सदस्य मानवेंद्र त्रिपाठी ने युवाओं की साहित्यिक पसंद पर चर्चा शुरू करते हैं। मंच पर उपस्थित विद्वतजन से प्रश्न कर वह साहित्य से जुड़ी युवा मन की हर दुविधा और जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करते आगे बढ़ते हैं।
इसी बीच संवादी की सार्थकता सिद्ध करते हुए दीर्घा से एक गंभीर प्रश्न आता है। प्रशांत कश्यप द्वारा किशोरों के लिए साहित्य सृजन न होने का सवाल उठाया जाता है।
इसी बीच संवादी की सार्थकता सिद्ध करते हुए दीर्घा से एक गंभीर प्रश्न आता है। प्रशांत कश्यप द्वारा किशोरों के लिए साहित्य सृजन न होने का सवाल उठाया जाता है।
तीसरे सत्र में तब ”शहर का सबरंग” तब मंच पर छा जाता है, जब ”शहरनामा” के संपादक डा. वेद प्रकाश पांडेय, होटल विवेक के प्रबंध निदेशक अचिंत्य लाहिड़ी और ताज होटल के निदेशक शोभित मोहन दास के साथ वरिष्ठ स्तंभकार डा. हर्ष सिन्हा संवाद का क्रम आगे बढ़ाया जाता है।
शिक्षा का नया केंद्र” विषय पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन, मदनमोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जयप्रकाश सैनी और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. कविता शाह के साथ डा.आमोद मंथन करते हैं। मंथन से निकले मोती सभागार में हर किसी के चेहरे पर गौरव की चमक बिखेर देते हैं।
अगले सत्र में नवोदित रचनाकारों को ओपेन माइक का मंच देकर कार्यक्रम नए पड़ाव पर पहुंचता है। ”गोरखपुर की युवा रचनाधर्मिता मनोरंजन और समाज” विषय पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता पवन मल्होत्रा के संग प्रशांत कश्यप की रोचक बतकही का क्रम आगे बढ़ता है।
रंगकर्म से जुड़े नवोदित कलाकारों तृप्त इसे सुन-गुनकर तृप्ति पाते हैं। अब मंच पर प्रख्यात लोक गायिका चंदन तिवारी का आगमन होता है। वह वैचारिक ओज से परिपूर्ण समारोह को अपने गीतों से सजाती हैं। इस तरह विचारों का मेला अगले दिन के लिए विश्राम पाता है। अभिव्यक्ति के उत्सव का हर रंग अलबेला, जन मन पर चस्पा हो जाता है।