चश्मदीद ने बताया सोफा फैक्ट्री में भीषण आग का आंखों देखा हाल, 15 मिनट तक गूंजती रही बचाओ-बचाओ की चीखें और फिर…
ग्रेटर नोएडा। ”मैं सो रहा था, इसी बीच भाई माेनू व परिजन आग-आग शोर मचाते हुए जगा दिए। आंख खुली तो बगल की सोफा फैक्ट्री के अंदर से बचाओ-बचाओ की दर्दनाक चीखें सुनाई दीं। परिजन के साथ पंप से आग बुझाने का प्रयास शुरू किया, लेकिन आग बुझने के बजाय भड़कती गई।
बताया कि करीब 15 मिनट बाद अंदर से चीखें दम तोड़ गईं।” ऐसा सोफा फैक्ट्री के बगल के मकान में रहने वाले बाराबंकी के रामसजीवन ने कहा।
रामसजीवन पल्लेदारी करते हैं। उन्होंने बताया कि आग बड़ी विकराल थी। उन्होंने स्वजन के साथ बुझाने का प्रयास किया। सोचा टीन शेड उखाड़कर अंदर फंसे लोगों को बाहर निकाल लें, लेकिन आग की लपटों के कारण वह काफी गर्म हो चुका था। इसके चलते इसमें भी कामयाबी नहीं मिली।
वहीं, दमकलकर्मी पहुंचे तो मेन गेट के अलावा अंदर पहुंचने का दूसरा रास्ता नहीं था। ऐसे में मेन गेट तोड़कर दमकलकर्मियों ने मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। जब पुलिस व दमकल कर्मी अंदर पहुंचे तो तीनों के शव पीछे के हिस्से में बड़े पर गंभीर हालत में जले मिले।
रामसजीवन ने बताया कि फैक्ट्री में पांच कारीगर काम करते थे। दो कारीगर जो बिहार के ही रहने वाले थे। कुछ दिन पहले घर गए थे। घटना स्थल से करीब 200 मीटर पर चाय दुकानदार रामबाबू का भी कहना है कि आग में फंसे कारीगरों की चीखें उनकी दुकान के पास तक सुनाई दे रहीं थी, लेकिन बाहर खड़े लोग आग की लपटों के कारण किसी तरह की मदद कर पाने में बेबस रहे।
एक्सपायर अग्निशमन यंत्र, 45 मिनट में बुझी आग
सोफा फैक्ट्री के अंदर लगे अग्निशमन संयंत्र अगस्त में ही एक्सपायर हो चुके थे। जिन्हें बदला नहीं गया था। लोगों का कहना है कि यदि अग्निशमन यंत्र एक्सपायर नहीं हुआ होता तो अंदर फंसे कारीगर उनसे आग पर काबू पाने का प्रयास कर किसी तरह बाहर निकल सकते थे।
बताया गया कि फैक्ट्री में दूसरा गेट भी नहीं था। मेन गेट बंद था। आग लगने की दो वजह होने की आशंका जताई जा रही है। पहले गैस लीकेज के कारण और दूसरी शार्ट सर्किट से, फिलहाल इसकी जांच की जा रही है।
छह वर्ष से सोफा फैक्ट्री में काम कर रहे थे कारीगर
मृतक गुलफाम के भांजे शकील ने बताया कि मामा छह वर्ष से तकरीर हसन की फैक्ट्री में काम कर रहे थे। वह तीन भाई व तीन बहनों में चौथे नंबर के थे। परिवार में पत्नी व एक बेटी है। पहले यह फैक्ट्री ई-77 स्थित दूसरे भवन में संचालित थी।
फैक्ट्री मालिक ने इस भवन को करीब दो वर्ष पहले किराए पर लिया था। दिलशाद अविवाहित था। परिवार में दो भाई व दो बहन हैं। जबकि मजहर के परिवार में पत्नी व तीन बच्चे बताए जा रहे हैं।