अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर का निधन, 100 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
जॉर्जिया: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर का रविवार (अमेरिका के स्थानीय समय) को निधन हो गया. वह 100 वर्ष के थे. जिमी कार्टर अमेरिका के सबसे लंबे समय तक जीने वाले राष्ट्रपति रहे. उनके बेटे जेम्स ई कार्टर- III ने इसकी जानकारी दी. जॉर्जिया स्थित घर पर उनका निधन हुआ. फिलहाल मौत के कारण का पता नहीं चल सका है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 2023 में वह कई बार अस्पताल में भर्ती हुए. बाद में अमेरिका के 39वें राष्ट्रपति ने आगे का चिकित्सा उपचार बंद करने और अपना शेष समय घर पर ही डॉक्टरों की देखरेख में बिताने का फैसला किया. हाल के वर्षों में उन्हें मेलेनोमा त्वचा कैंसर के एक रूप का इलाज किया गया था. इसमें ट्यूमर उनके लीवर और मस्तिष्क तक फैल गया था.
वाशिंगटन पोस्ट ने यह भी लिखा कि कार्टर की आखिरी तस्वीर एक अक्टूबर को उनके घर के बाहर परिवार और मित्रों के साथ खींची गई थी, जब वे अपने 100वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में शामिल हुए थे. अपने पूरे जीवनकाल में जिमी कार्टर ने कई भूमिकाएँ निभाई.
वह एक छोटे शहर के मूंगफली किसान, अमेरिकी नौसेना के एक अनुभवी और 1971 से 1975 तक जॉर्जिया के गवर्नर थे. वह 1837 के बाद से डीप साउथ से पहले राष्ट्रपति बने. अमेरिका के 39वें राष्ट्रपति के रूप में कार्टर को कैंप डेविड समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए याद किया जाता है. इसके परिणामस्वरूप 1967 के छह दिवसीय युद्ध में कब्जाए गए क्षेत्र से पहली बार महत्वपूर्ण इजरायली वापसी हुई. साथ ही इजरायल तथा मिस्र के बीच शांति संधि हुई जो कायम है.
नोबेल पुरस्कार वक्तव्य के अनुसार कार्टर को उनके प्रयासों के सम्मान में अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढने, लोकतंत्र और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने तथा आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए दशकों के उनके अथक प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में पनामा नहर संधि को आगे बढ़ाने में कार्टर की भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया. इसके तहत महत्वपूर्ण जलमार्ग को पनामा के नियंत्रण में लाया गया जिससे लैटिन अमेरिकी पड़ोसियों के साथ अमेरिका के संबंधों में सुधार हुआ. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा किए गए उद्घाटन का लाभ उठाते हुए कार्टर ने चीन को पूर्ण राजनयिक मान्यता प्रदान की तथा मानवाधिकारों को अमेरिकी विदेश नीति का केन्द्रीय विषय बनाया.