उत्तराखण्ड

रघुवर दास की धमक बरकरार, परंपरागत सीट पर बहू के जरिए बढ़ाएंगे राजनीतिक विरासत; पढ़ें खास बात

रांची। राजनीति में पल-पल समीकरण बदलते हैं। शनिवार को इसका उदाहरण भी देखने को मिला। भाजपा के प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो कई अटकलों पर एक सिरे से विराम लग गया।

पहले कयास लगाया जा रहा था कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के वर्तमान राज्यपाल रघुवर दास राज्य की राजनीति से अलग-थलग पड़ सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

शनिवार को दोपहर में ही तय हो गया था कि उनकी पुत्रवधू पूर्णिमा दास साहू जमशेदपुर पूर्वी से उनकी जगह जमशेदपुर पूर्वी सीट पर परंपरागत राजनीतिक विरासत को संभालेंगी।

जानकारी के मुताबिक, पूर्णिमा ने छत्तीसगढ़ में बतौर पत्रकार अपने करियर की शुरुआत की थी। अब उनके कंधे पर रघुवर दास की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की महती जिम्मेदारी होगी।

रघुवर दास के बतौर राज्यपाल संक्षिप्त कार्यकाल में ओडिशा में बड़ा राजनीतिक परिवर्तन भी हुआ। लगभग 25 साल पुरानी नवीन पटनायक सरकार के स्थान पर भाजपा को बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला।

रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी सीट से पिछली बार हो गए थे पराजित

उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी सीट से पराजित हो गए थे। उन्हें निर्दलीय सरयू राय ने पराजित किया था।

इस बार विधानसभा चुनाव के पहले राजनीतिक समीकरण बदला तो सरयू राय भाजपा की सहयोगी जदयू में शामिल हो गए। तालमेल के तहत उन्हें भाजपा सीट भी दे रही है। सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी से ही चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा सीट पर शिफ्ट करना पड़ा। वे वहां जदयू के प्रत्याशी होंगे।

वैसे भाजपा की सूची में ऐसे ढ़ेरों प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं, जो रघुवर दास की पसंद बताए जाते हैं। ऐसे में उन कयासों पर अब पूरी तरह विराम लग गया है, जिसमें यह कहा जा रहा था कि रघुवर दास का झारखंड की राजनीति में दखल और नियंत्रण कम हो रहा है।

गलत संदेश जाने का था डर

राज्य में वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने पहली बार गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग किया था। रघुवर दास को भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनाया। उन्होंने पांच साल तक शासन किया। चुनाव में रघुवर दास को एकदम अलग-थलग करने का जोखिम भी था।

इससे ओबीसी वोटरों खासकर वैश्य समुदाय में गलत संदेश जाने का डर था। यही वजह है कि ओडिशा का राज्यपाल बनने के बावजूद रघुवर दास की चमक और धमक फीकी नहीं पड़ी।

भुवनेश्वर राजभवन में उनसे राज्य के नेता अक्सर मुलाकात करने जाते हैं। रघुवर दास भी अक्सर झारखंड का दौरा करते हैं। खासकर वे जमशेदपुर में सार्वजनिक समारोहों में भी लगातार सक्रिय रहते हैं।

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