युवाओं में भी जबरदस्त क्रेज; देशभक्ति का दिया संदेश, रत्नावली ने हरियाणवी पगड़ी को विश्व में दिलाई पहचान
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शुरू हुई रत्नावली
‘सिर को सुरक्षित रखने के लिए होता है पगड़ी का प्रयोग’
कुवि लोक संपर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेला, अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव तथा हरियाणा के सभी उत्सवों में पगड़ी का उत्साह देखने को मिलता है। यह उत्साह युवक व युवतियों में विशेष रूप से देखने को मिलता है।
अनादिकाल से धारण की जाती है पगड़ी
वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी सिरोधार्य है। पगड़ी के अतीत के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परंपरा रही है।
पगड़ी बांधों में कुवि टीम प्रथम
हरियाणवी पगड़ी बांधो प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार कुवि कैंपस टीम, द्वितीय पुरस्कार आरकेएसडी पीजी कालेज कैथल, तृतीय पुरस्कार केएम सरकार कालेज नरवाना ने प्राप्त किया।
देशभक्ति का दिया संदेश
देश की आजादी के समय पगड़ी संभाल जट्टा… गीत के माध्यम से देश भक्ति और समाज की लाज बचाने का संदेश दिया गया। हरियाणा में धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, जाति के आधार पर भी पगड़ी बांधने की परंपरा रही है।
हिंदू पगड़ी, मुस्लिम पगड़ी, सिख पगड़ी, आर्यसमाजी पगड़ी, ब्रज पगड़ी, अहीरवाली पगड़ी, मेवाती पगड़ी, खादरी पगड़ी, बागड़ी पगड़ी, बांगड़ी पगड़ी, पंजाबी तूर्रेदार पगड़ी, गुर्जर पगड़ी, राजपूती पगड़ी, बिश्रोई पगड़ी, मारवाड़ी पगड़ी, रोड़ों की पगड़ी, बाणियों की पगड़ी, सुनारी पगड़ी, पाकिस्तानी की पगड़ी व मुल्तानी पगड़ी का प्रचलन रहा है।
परिवार के मुखिया पहनते रहे हैं पगड़ी
लोक जीवन में परिवार के मुखिया द्वारा पगड़ी पहनने की परंपरा रही है। इसी प्रकार ठोले के मुखिया, पट्टी के मुखिया, पान्ने के मुखिया, गांव, गोत्र, सतगामा, अठगामा, बारहा, खाप तथा पाल के चौधरी द्वारा भी हरियाणवी पगड़ी बांधने की परंपरा रही है।